अत: उसके ऊपर प्रथम मात्रा के प्रतीक स्वरूप पहले चन्द्रबिन्दु बनाएँ-4.
2.
सम के अलावा खाली (जहाँ तबले में ड्ग्गा नहीं बजता) और ताली अन्य विभागों की प्रथम मात्रा है।
3.
इसी प्रकार मात्रा को बराबर बढ़ाते जाते हैं जब तक कि जंतु प्रथम मात्रा से कई सौ गुनी अधिक मात्रा नहीं सहन कर लेता।
4.
इसी प्रकार मात्रा को बराबर बढ़ाते जाते हैं जब तक कि जंतु प्रथम मात्रा से कई सौ गुनी अधिक मात्रा नहीं सहन कर लेता।
5.
इसी प्रकार मात्रा को बराबर बढ़ाते जाते हैं जब तक कि जंतु प्रथम मात्रा से कई सौ गुनी अधिक मात्रा नहीं सहन कर लेता।
6.
इस प्रथम मात्रा से जंतु को रोग का हलका सा आक्रमण होता है, किंतु उसके शरीर में उन जीवाणुओं का नाश करनेवाली वस्तुएँ बनने लगती हैं।
7.
इस प्रथम मात्रा से जंतु को रोग का हलका सा आक्रमण होता है, किंतु उसके शरीर में उन जीवाणुओं का नाश करनेवाली वस्तुएँ बनने लगती हैं।
8.
इस प्रथम मात्रा से जंतु को रोग का हलका सा आक्रमण होता है, किंतु उसके शरीर में उन जीवाणुओं का नाश करनेवाली वस्तुएँ बनने लगती हैं।
9.
खाली-ताल के उस विभाग को खाली कहते है, जिस पर विभाग की प्रथम मात्रा पर हाथ सेताली न बजाकर हाथ को थोड़ा दाहिनी या बाई ओर झुका कर दिखालाया जाता है.
10.
ॐकार ” द्वारा ब्रह्म की उपासना के रहस्य के विषय में बताते हुए ऋषि आगे कहते हैं कि उसकी प्रत्येक मात्रा की उपासना जीवन को सुखमय बनाती है इसकी प्रथम मात्रा ऋग्वेद का रूप है.